भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बरखा रानी / कैलाश गौतम
Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:08, 31 मार्च 2011 का अवतरण
चाल सुधारा चाल सुधारा
बरखा रानी चाल सुधारा
कब्बौ झूरा कब्बौ बाढ़
केसे केसे लेईं राढ़
खेतवन से बस दुआ बंदगी
खरिहनवन से भाई चारा॥
सोच समझ के पाठ पढ़ावा
पानी में जिन आग लगावा
कब तक रहबू आसमान पर
तू निचवों तनी निहारा॥
अब जिन बरा धूर में जेंवर<ref>धूल में रस्सी बटना</ref>
सब बूझत हौ ई खर-सेवर<ref>भोजन के समय में व्यतिक्रम</ref>
कवने करनी गया बइठबू
पहिले कुल क पुरखा तारा॥
कब तक अपने मन क करबू
हमरे छाती कोदो दरबू
ताले ताले धूर उड़त हौ
कागज पर तू खना इनारा<ref>कुआँ</ref>॥
दिनवा रतिया रटै पपीहा
उल्लू भइलै आज मसीहा
कौवा भंजा रहल है मोती
मुँह जोहत है हंस बेचारा॥
फगुन चइत में पानी पानी
सावन-भादों में बेइमानी
जेही क कुल छाजन-बाजन
वहिके पतरी खंडा बारा।
शब्दार्थ
<references/>