भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

शिशिर में भवाली / रमेश कौशिक

Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:01, 1 अप्रैल 2011 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

घाटियों की बाल्टी में
बर्फ़
जैसे सर्फ़

अभी कुछ देर में
वह
नभ से उतर कर आयेगी
शिखर के कंगूरों
तरुवरों
घर की छतों पर
कड़े सुखाएगी