भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
शिविर की शर्वरी / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"
Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:02, 1 अप्रैल 2011 का अवतरण
शिविर की शर्वरी
हिंस्र पशुओं भरी।
ऐसी दशा विश्व की विमल लोचनों
देखी, जगा त्रास, हृदय संकोचनों
कांपा कि नाची निराशा दिगम्बरी।
मातः, किरण हाथ प्रातः बढ़ाया
कि भय के हृदय से पकड़कर छुड़ाया,
चपलता पर मिली अपल थल की तरी।