भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
चाँद रात / परवीन शाकिर
Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:44, 1 अप्रैल 2011 का अवतरण
गए बरस की ईद का दिन क्या अच्छा था
चाँद को देख के उसका चेहरा देखा था
फ़ज़ा में कीट्स के लहजे की नरमाहट थी
मौसम अपने रंग में फ़ैज़ का मिश्रा था
दुआ के बेआवाज़ उलूही लम्हों में
वो लम्हा भी कितना दिलकश लम्हा था
हाथ उठा कर जब आँखों ही आँखों में
उसने मुझको अपने रब से माँगा था
फिर मेरे चेहरे को हाथों में लेकर
कितने प्यार से मेरा माथा चूमा था
हवा कुछ आज की शब का भी अहवाल सुना
क्या वो अपनी छत पर आज अकेला था
या कोई मेरे जैसी साथ थी और उसने
चाँद को देख के उसका चेहरा देखा था