Last modified on 1 अप्रैल 2011, at 22:46

चाँद ने मार रजत का तीर / सुमित्रानंदन पंत

Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:46, 1 अप्रैल 2011 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

चाँद ने मार रजत का तीर
निशा का अंचल डाला चीर,
जाग रे, कर मदिराधर पान,
भोर के दुख से हो न अधीर!
इंदु की यह अमंद मुसकान
रहेगी इसी तरह अम्लान,
हमारा हृदय धूलि पर, प्राण,
एक दिन हँस देगी अनजान!