ऐसे दिख रही है ज़िन्दगी
कविता में
जैसे चाँद पर से
दिखती धरती
हेलीकॉप्टर से दिखती
चढ़ी हुई नदी और बाढ़
उतनी दूर नहीं
पर जितनी साफ़ उजली बेपर्द
बिल्कुल नंगी उद्विग्न
साबुत और तार-तार
घुटनों तक धँसी आत्मा
लिथड़ी है कीचड़ में
चाँद पर सुनाई पड़ रही
धरती की चीख़-पुकार...
रचनाकाल : 1999, नई दिल्ली