भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
चांद हमारी ओर बढ़ता रहे / सुन्दरचन्द ठाकुर
Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:29, 1 अप्रैल 2011 का अवतरण
चांद हमारी ओर बढ़ता रहे
अंधेरा भर ले आग़ोश में
तुम्हारी आंखों में तारों की टिमटिमाहट के सिवाय
सारी दुनिया फ़रेब है
नींद में बने रहें पेड़ों में दुबके पक्षी
मैं किसी की ज़िन्दगी में ख़लल नहीं डालना चाहता
यह पहाड़ों की रात है
रात जो मुझसे कोई सवाल नहीं करती
इसे बेख़ुदी की रात बनने दो
सुबह
एक और नाकाम दिन लेकर आयेगी.