गिरवी दर गिरवी / मुसाफ़िर बैठा
जिस मां के कुपोषित स्तन में
न उतर सका ममता भर दूध भी
जिससे लगकर चुभका मारकर
दूध पी अघा सका न कभी उसका बच्चा
जो मां अपनी छाती के दूध के सिवा
अपने जिगर के टुकड़े को दे न सकी
किसी दूसरे पोषाहार का पूरक संबल
और बीत गया उसके लाल का अदूध ही
दूधपीता बचपन
उसकी जननी छाती को मन भर जुराए बिना ही
वह मां आज
हो गई है और कमजोर
किसी कानों सुनी बात पर
इतनी आतुर यकीनी हो गई है वह
कि दो निवाले रोटी की जुगत कराते
अपने तवे तक को लगा आई है बंधक
और बदले में मिले धन से खरीद लाई है
सवा सेर गाय का कथित पवित्रा दूध
दुर्गा मां को पिलाने की जिद्द पालकर
क्या यह सवाल हो सकता है
कि क्यों हम हुए हैं ऐसे
कि जो जिद्द ममत्व को नहीं नसीब
वह जिद्द विवेक बुद्धि
रोटी तक को रख गिरवी
जा सकती है किसी हद तक
किसी अमूर्त अलख को पाने को
यह जिद्द क्यों इतना है भारी
यह जिद्द क्यों हम पर है तारी ?
2005