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कोसी अँचल में बाढ़ (2008)-1 / मुसाफ़िर बैठा
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लोग भूल चले थे अबतक
कि धन-धान्य की कोख रही कोसी
कभी शोक भी कहलाया करती थी
अब उसके दुलार पुचकार से पिफर से
हरियर होने लगे थे आंचल के रहवासी
कि इसके जल का तांडव नाच
एक बार फिर से रच गया था
तबाही का अथाह मंजर
किसी और की नादान कारस्तानियों की सजा
बिनकियों पर आरोपित करते हुए
गोया
प्रकृति का बल भी भरता है पानी
बरजोर आदमी के आगे और
बरपता है उसका कहर
कमजोरों पर ही