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मृत्यु-दीप / महेन्द्र भटनागर

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कौन-से दीपक जले ये ?

विश्व में जब सनसनातीं वेग से नाशक हवाएँ,
साथ जिनके आ रही हैं हर मनुज-सर पर बलाएँ,
हो रहा जीवन-मरण का खेल जब रक्तिम-धरा पर,
मिट रहे मानव अनेकों घोर क्रन्दन का जगा स्वर,
त्रस्त-पीड़ित जब मनुजता कौन से दीपक जले ये ?

युद्ध के बादल गगन में, भूख धरती पर खड़ी है,
सांध्य-जीवन की करुण तम यह असह दुख की घड़ी है,
मृत्यु का त्यौहार है क्या ? विश्व-मरघट में जले जो,
स्नेह बिन बाती जलाकर शून्य में रो-रो पले जो ?
प्रज्वलित हैं जब चिताएँ कौन-से दीपक जले ये ?
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