भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
ठंड से मृत्यु / रघुवीर सहाय
Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:46, 6 अप्रैल 2011 का अवतरण
फिर जाड़ा आया फिर गर्मी आई
फिर आदमियों के पाले से लू से मरने की खबर आई :
न जाड़ा ज़्यादा था न लू ज़्यादा
तब कैसे मरे आदमी
वे खड़े रहते हैं तब नहीं दिखते,
मर जाते हैं तब लोग जाड़े और लू की मौत बताते हैं।
(फरवरी, 1972)