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मौत / भरत ओला
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मुझे अच्छी तरह याद है
जब मैं पहली बार मरा था
बहुत पीड़ा हुई थी
हजारों-हजारों बिच्छूओं ने
मारा हो डंक
एक साथ
बस उस दिन के बाद
मेरा काम सरा था
बहुत रोया था मैं
अपनी पहली मौत पर
किसी कूरिये<ref>पिल्ला</ref> के मरने पर
जैसे कुत्ती रोया करती है
रात रात भर
अब मैं
हर रोज मरता हूं
दतर, घर
गाहे-बगाहे
बीच चौराहे
सामने खड़े
खिचड़ी दाढ़ी वाले
झुर्रीदार उदास चेहरे की
अनगिनत रेखाओं का
अब मुझ पर
असर नही होता
यकीनन
मैं मर चुका हूं
अब मेरे भीतर
किसी तरह का
समर नहीं होता
शब्दार्थ
<references/>