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मौत : दो / प्रफुल्ल कुमार परवेज़

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वह रोज़ कमाता
रोज़ खाता

रोज़ लुटता उसका अधिकांश हिस्सा
बचे-खुचे हिस्से से
आधा—अधूरा भरता
परिवार का पेट

वह आहिस्ता-आहिस्ता
रोज़ मर रहा था
और आज मर ही गया
शहर बेख़बर है
कि वह मर गया