नाला ए नारसा नहीं कुछ भी / ज़िया फ़तेहाबादी
नाला ए नारसा नहीं कुछ भी ।
अब मुझे आसरा नहीं कुछ भी ।
पूछते हैं वो क्या नहीं कुछ भी ।
क्या कहूँ हौसला नहीं कुछ भी ।
हो वफ़ा या जफ़ा मुहब्बत की
इब्तदा इन्तेहा नहीं कुछ भी ।
मैं हूँ किश्ती है मौज ए तूफाँ है
साहिल ए नाख़ुदा नहीं कुछ भी ।
रोज़ करते हैं यूँ जफ़ा मुझ पर
जैसे मेरी वफ़ा नहीं कुछ भी ।
गुफ़ता ए अक़ल कुछ तो है वरना
जो जुनूँ ने कहा नहीं कुछ भी ।
कट गई उम्र पा ए साक़ी पर
तलखियों का गिला नहीं कुछ भी ।
हो मेरी ख़ामुशी पे चींबजबीं
अभी मैंने कहा नहीं कुछ भी ।
आज़माईश अगर वफ़ा की न हो
इम्तिहान ए वफ़ा नहीं कुछ भी ।
मेरी दुनिया में क्यूँ सिवाए अजल
ज़िन्दगी का सिला नहीं कुछ भी ।
वादी ए ग़म में ला के छोड़ दिया
अब खुला, रहनुमा नहीं कुछ भी ।
ऐ " ज़िया " इन बुतों के इश्क़ में क्यूँ
नारवा और रवा नहीं कुछ भी ।