भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

इक पौधा तो लगाइए /रमा द्विवेदी

Kavita Kosh से
Ramadwivedi (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:08, 9 अप्रैल 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna | रचनाकार=रमा द्विवेदी }} <poem> ज़िन्दगी की क्यारी में इक पौ…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


ज़िन्दगी की क्यारी में इक पौधा तो लगाइए,
दूसरों को हंसने दें औ खुद भी मुस्कुराइए।
जल रही है धरती और जल रहा जहान है,
जल रहा है चप्पा-चप्पा,जल रहा आसमान है,
नफ़रतों को त्याग कर प्यार को अपनाइए...
ज़िन्दगी की क्यारी में इक पौधा तो लगाइए।
तेरा -मेरा करके हमें कुछ नहीं मिल पाएगा,
मिल बांट्के खाएंगे गर स्वर्ग भी मिल जाएगा,
शिकवे-गिले छोड़कर अब तो मान जाइए....
ज़िन्दगी की क्यारी में इक पौधा तो लगाइए,
खाली हाथ आए हैं, खाली हाथ जाएंगे,
गर किए सत्कर्म तो साथ वो ही जाएंगे,
ज़िन्दगी है चार दिन कुछ पुण्य करके जाइए..
ज़िन्दगी की क्यारी में इक पौधा तो लगाइए,
पंच तत्व से बना मानव का शरीर है,
कर्ज़ है प्रकृति का तुझ पे फिर भी तू अधीर है,
ब्याज भी गर छोड़ दें मूल तो बचाइए....
ज़िन्दगी की क्यारी में इक पौधा तो लगाइए|