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मुझसे बोलो / प्रयाग शुक्ल

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बादल! मुझसे बोलो!

बन्द रन्ध्र सब खोलो!
रोम रोम में बजो
हमारे हो लो!

मिट्टी की यह छुअन
तुम्हारी, उमड़े
गन्ध बने स्मृति की-
व्याकुल, बोलो!

जी भर जी को धो लो!