भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
प्यार का क्या करें कविगण / हेमन्त शेष
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:51, 11 अप्रैल 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हेमन्त शेष |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poem> भारत में प्रेम एक…)
भारत में प्रेम एक घटिया शब्द
बनाया जा चुका है। और रहेगा।
इसे ही मुंबई का सिनेमा कहता है ‘प्यार’
रही सही कसर सस्ते उपन्यास-सम्राटों ने पूरी कर दी है।
स्थिति यह है कि अब प्रेम करने वाले भी प्रेमी कहलाने से डरते हैं।
पर विडम्बना देखिए
गाहे-बगाहे हमें भी
पूरी गंभीरता से करना पड़ता है
इसी शब्द का इस्तेमाल।
और तब हम भीतर से प्रेम को लेकर उतने चितिंत नहीं होते
जितने होते हैं इसके दु:खद पर्यायवाची से:
कुछ खास-खास मौकों पर
हूबहू प्रेमी की तरह दिखते हुए ‘प्यार’ शब्द से डरते ,
भीतर से पर
महज
कवि रहते ।