भेड़ियों का निवेश / प्रमोद कुमार
एक दिन एक भेड़िया आया
और उठा ले गया एक बच्चे को
लोगों को लगा
कि वह एक दुर्घटना थी
दूसरे दिन फिर ग़ायब हुआ एक बच्चा
लोगों को देखने से अधिक मानने की आदत थी
उन्होंने मान लिया कि भेड़िया फिर आ गया होगा
बस्ती आदमी की थी
लोगों ने नहीं देखा
कि वहाँ के रास्ते किसके हैं
किसी ने नहीं सोचा
कि रास्ते कहीं और भी आते-जाते हैं
भेड़िये रास्तों में अपने रास्ते जानते थे
उन्हें पक्का करने लगे रोज़-राज़
आदमी उठाने लगे नई-नई दीवारें
मज़बूत करने लगे अपनी-अपनी छतें, दरवाजे़
उन्हें अपने हाथों में यही दिखा
अपने बस का कर लेने के संतोष में
वे ख़ुश थे
लोगों की वह ख़ुशी ऐसी थी
कि उस पर भेड़िये भी ख़ुश हुए
अपनी योजना में
निवेश का बढ़ना उन्हें अच्छा लगा
लोगों को अपने घर सुरक्षित लगे
भेड़ियों को पूरा संसार
बच्चों के सारे खेल, विश्वविद्यालय
और नौकरियाँ भी बन्द घेरे में
लेकिन, बच्चे लगातार
ग़ायब होते रहे
माँ-बाप बच्चों के लौटने की आशा में
रास्ते निहारते रहे
कुछ दिनों बाद
ग़ायब बच्चों की शक्ल में
भेड़ियों के बच्चे लौटते दिखे
सफलता के डँके पिटते
रास्ते निहारते-निहारते माँ-बाप ने
जाकर उन दिनों देखा
कि उनके घर उनके रास्ते पर नहीं हैं
आगे एक दिन ऐसा भी आया
कि बस्ती के सारे लोग सो गए
घर के सारे दरवाज़े खुले छोड़
लोगों ने मान लिया
कि उनके बच्चे उनके नहीं
भेड़ियों के हैं ।