भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मेरे मन मन्दिर मे राम बिराजे / भजन

Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:37, 13 अप्रैल 2011 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मेरे मन मन्दिर मे राम बिराजे।
ऐसी जुगति करो हे स्वामी ॥

अधिष्ठान मेरा मन होवे।
जिसमे राम नाम छवि सोहे ।
आँख मूंदते दर्शन होवे
ऐसी जुगति करो हे स्वामी ॥
मेरे मन ...

सांस सांस गुरु मन्त्र उचारूं।
रोमरोम से राम पुकारूं ।
आँखिन से बस तुम्हे निहारूं।
ऐसी जुगति करो हे स्वामी ॥
मेरे मन ...

औषधि रामनाम की खाऊं।
जनम मरन के दुख बिसराऊं ।
हंस हंस कर तेरे घर जाऊं।
ऐसी जुगति करो हे स्वामी ॥
मेरे मन ...

बीते कल का शोक करूं ना।
आज किसी से मोह करूं ना ।
आने वाले कल की चिन्ता।
नहीं सताये हम को स्वामी ॥
मेरे मन ...

राम राम भजकर श्री राम।
करें सभी जन उत्तम काम ।
सबके तन हो साधन धाम।
ऐसी जुगति करो हे स्वामी ॥
मेरे मन ...

आँखे मूंद के सुनूँ सितार।
राम राम सुमधुर झनकार ।
मन में हो अमृत संचार।
ऐसी जुगति करो हे स्वामी ॥
मेरे मन ...

मेरे मन मन्दिर मे राम बिराजे।
ऐसी जुगति करो हे स्वामी ॥