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हे मेरी तुम उन्मुख वीणा ! / केदारनाथ अग्रवाल

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हे मेरी तुम उन्मुख वीणा !
तुमको जब तक लिए अंक में
        जिऊँ, अन्त तक,
तब तक, हाँ, तुम तब तक
      मेरी ओर निहारो
और प्यार के तार-तार से
बार-बार तुम मुझे पुकारो--
कभी किसी क्षण
      नहीं बिसारो ।