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तुम्हारी पलकों का कँपना / अज्ञेय
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तुम्हारी पलकों का कँपना ।
तनिक-सा चमक खुलना, फिर झँपना ।
तुम्हारी पलकों का कँपना ।
मानो दीखा तुम्हें किसी कली के
खिलने का सपना ।
तुम्हारी पलकों का कँपना ।
सपने की एक किरण मुझको दो ना,
है मेरा इष्ट तुम्हारे उस सपने का कण होना,
और सब समय पराया है
बस उतना क्षण अपना ।
तुम्हारी
पलकों का कँपना ।