भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

स्वयम्वर-कथा (रामचन्द्रिका से) / केशवदास

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

                                  सव्याम्वर-कथा
          [दोहा]
खंड्परस को सोभिजे, सभामध्य कोदंड।
मानहुं शेष अशेष धर, धरनहार बरिबंड।।१।।

           [सवैया]
सोभित मंचन की आवली, गजदंतमयी छवि उज्जवल छाई।
ईश मनो वसुधा में सुधारि, सुधाधरमंडल मंडि जोन्हई।।
तामहँ केशवदास विराजत, राजकुमार सबै सुखदाई।
देवन स्यों जनु देवसभा, सुभ सीयस्वयम्वर देखन आई।।२।।

          [घनाक्षरी]
पावक पवन मणिपन्नग पतंग पितृ,
    जेते ज्योतिविंत जग ज्योतिषिन गाए है।
असुर प्रसिद्ध सिद्ध तीरथ सहित सिंधु,
    केशव चराचर जे वेदन बताए हैं।
अजर अमर अज अंगी औ अनंगी सब,
    बरणि सुनावै ऐसे कौन गुण पाए हैं।
सीता के स्वयम्वर को रूप अवलोकिबे कों,
    भूपन को रूप धरि विश्वरूप आयें हैं।।३।।

          [सवैया]
सातहु दीपन के अवनिपति हारि रहे जिय में जब जानें।