भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बहरापन-1 / ऋषभ देव शर्मा
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:55, 17 अप्रैल 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ऋषभ देव शर्मा |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <Poem> शोर है, हंगामा ह…)
शोर है, हंगामा है;
लोग
ताबड़तोड़ पीट रहे हैं
मेज़ें
और सोच रहे हैं
हिंदुस्तान
बहरा है!