Last modified on 17 अप्रैल 2011, at 04:35

मिलने, न मिलने के बीच / विमल कुमार

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 04:35, 17 अप्रैल 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= विमल कुमार |संग्रह=बेचैनी का सबब / विमल कुमार }} {{KK…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

मिलने से
अच्छा है
नहीं मिलना
नहीं मिलने से
अच्छा है मिल लेना
मिलने और न मिलने के बीच भी
एक जगह है

क्यों न अगली बार से हम
नहीं मिलें
पता नहीं वह कितना अच्छा है ?
इसी बहाने लग जाएगा पता
क्या उसी जगह पर
प्रेम सच्चा है ?