भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

प्रेम-क़ैद / विमल कुमार

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 04:37, 17 अप्रैल 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= विमल कुमार |संग्रह=बेचैनी का सबब / विमल कुमार }} {{KK…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

देवी होकर
तुम भी जकड़ी हो बेड़ियों में

यह तो मैंने सोचा भी नहीं था
कि किसी मूर्ति के शरीर में
लिपटी होंगी इस तरह ज़ंजीरें

धृष्टता होगी
यह सोचना भी
तुम अपने प्रेम से मुक्त करो मुझे
तुम तो ख़ुद ही डूबी हो
दुख में
मैं अपने सुख की
क्या करूँ तुमसे उम्मीद ?