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सिरहाने में याद / विमल कुमार

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मैं बिस्तर पर पड़ा हूँ
बीस दिनों से
अच्छी तरह जानता हूँ
तुम मुझे देखने नहीं आओगी

क्या चाँद कभी धरती पर आता है
क्या तारे ? क्या बादल ?
मैंने बड़ी ग़लती की तुम्हें
चाँद-तारे बनाकर
बनाकर कोई बादल

अगर मैंने तुम्हें एक चिड़िया बनाया होता तो
फुर्र से उड़कर तुम आ जाती
एक पत्ता बनाया होता
तो वह भी आँधी में उड़कर आ गया होता
मैंने अगर तुम्हें कोई ख़त बनाया होता
तो वह भी दो-चार दिनों में आ जाता ।

पर अगर तुम नहीं आओगी
तो मैं बुरा नहीं मानूँगा
तुम्हारी याद तो है मेरे पास
मेरे सिरहाने
शायद उसी से मैं
ठीक हो जाऊँ
और दो-एक दिन में
दफ़्तर जाने लगूँ !