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कल्पना में प्रेम / विमल कुमार
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कल्पना में ही रहो
बेहतर है
आसमान पर चाँद की तरह टँगी रहो
धरती पर न उतरो
यहाँ कि आबोहवा तुम्हें डँस लेगी
बहुत होगी तुम्हें तकलीफ़
तुम्हारा चेहरा, तुम्हारा रंग बदल जाएगा
फिर तुम वह नहीं रहोगी
जो कि कल्पना में दिखती हो
तुम्हारा सौन्दर्य झर जाएगा
बच्चे की फ़ीस जमा करते-करते
पानी और बिजली का बिल चुकाते-चुकाते
बस से दफ़्तर आते-जाते
तुम बूढ़ी हो जाओगी
एक दिन, बेरंग हो जाओगी
तुम्हें अपना चेहरा आईने में
पहचान में नहीं आएगा
इसलिए मैं कहता हूँ
तुम कल्पना में ही रहो
वहीं से प्रेम करो
यहाँ आकर तो वह भी
ख़त्म हो जाएगा
घर-गृहस्थी के चक्कर में