भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अधूरा प्यार / विमल कुमार

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 05:04, 17 अप्रैल 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= विमल कुमार |संग्रह=बेचैनी का सबब / विमल कुमार }} {{KK…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कर रहा हूँ
तुमसे अब तक मैं
अधूरा प्यार
नहीं जान पाया हूँ
तुम्हें पूरा

अभी तो मैं
नहीं जान पाया हूँ
ख़ुद को

मरने के ठीक पहले
शायद मैं कह पाऊँगा
तुम्हें कितना जान पाया
कितना तुम्हें कर पाया
प्यार

पर चाहता तो मैं हमेशा था
करना पूरा प्यार
जानना तुम्हें पूरा का पूरा
लेकिन कभी भी किसी को
पूरी तरह नहीं जान सकता

कोई चीज़ नहीं होती पूरी
इसलिए मैं करता रहूँगा
तुमसे मैं हमेशा अधूरा प्यार ।