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सौ ख़ून माफ़ हैं आक्सीजन के / विमल कुमार

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धीरे-धीरे तुम मेरे लिए
आक्सीज“न में तब्दील हो गई
जैसे कोई बीज बदल जाता है
एक दिन फूल की शक्ल में
और बीज को भी नहीं मालूम होता है
वह फूल में बदल गया
फूल को भी नहीं मालूम होता है
वह कभी बीज था

कोई कैसे करेगा यक़ीन
हाड़-माँस का पुतला कैसे बदल सकता है
आक्सीज“न में
पर तुम हवा बनकर आई थी मेरे लिए
तुम्हें मालूम नहीं था
कि तुम किसी के लिए आक्सीज“न बन गई हो इन दिनों
बेख़बर थी तुम
अपने इस परिवर्तन से
जैसे बेख़बर हैं बीज
क्या पता वह भी किसी के लिए
फूल में तब्दील हुआ हो

जब बाहर की हवा से
साँस नहीं ले पा रहा था मैं
गर्मी और उमस इतनी थी
मेरे सीने में
भर गये थे कीटाणु
भर गया था धुआँ इतना
ज़ख़्म हो गए थे गहरे
तुम्हें ही मैं मानने लगा था आक्सीजन
मुझे लगा था
अब मेरी साँस चलने लगेगी
मैं थोड़ी देर और जी जाऊँगा
अस्पताल में

मैं अपनी साँस से
मिलने के लिए ही
तुमसे समय माँगता था
तुम तो मेरे लिए अदृश्य थी
हवा जो ठहरी
बैठी रहती थी पास मेरे
मैं तुमसे गुफ़्तगू थोड़े ही करता था
मैं तो साँस ले रहा था
बातचीत में भी
देखो, कितनी तेज़“ चलने लगती थी धौंकनी मेरी
सीने में जल रही था
आक्सीज“न धीरे-धीरे

जैसे मरीज“ के शरीर में ख़ून जाता है
बूँद-बूँद करके
जब यह आक्सीज“न
खत्म होने लगती है
छटपटाने लगता हूँ मैं
वक़्त मेरा गला दबाने लगता है
भोंकने लगता है
पेट में मेरे कोई छुरा

मैं तुमसे अनुरोध करता हूँ
क्या आज तुम फिर
चन्द मिनटों के लिए मिल पाओगी
साँस लेने में हो रही है
तकलीफ़’ मुझे ।

कोई कैसे कर सकता है
कभी नाराज़ किसी आक्सीजन को
कोई कैसे पहुँचा सकता है दुख उसे
लाख वह कर ले ग़लतियाँ

जो आदमी
किसी के लिए
आक्सीज“न बनकर आए
थोड़ी देर के लिए ही सही
उसका उपकार कैसे
भूला जा सकता है
जीवन में कभी भी
सौ ख़ून माफ़’ हैं इस आक्सीज“न के !

भले ही वह बन जाए मेरे जीवन में
एक दिन कार्बन-डायक्साइड