भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

शव से प्रेम / विमल कुमार

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 05:54, 17 अप्रैल 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= विमल कुमार |संग्रह=बेचैनी का सबब / विमल कुमार }} {{KK…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मैं जानता हूँ
एक ऐसी औरत को
जो करती है शव से ही प्यार

चूमती है उसके होठों को
बालों को सहलाती है
भरती है उसे अपनी बाँहों में
लिखती है उसे ख़त भी
भेजती है आसमान के पते पर

मैंने उससे कहा
अब तुम क्यों करती हो
उस शव से प्यार
जीते जी तुमने नहीं किया
जबकि वह मर गया
तुमसे प्यार की भीख माँगता हुआ
घुट-घुट कर

उसने सिसकते हुए कहा
मैं केवल शव से
करती हूँ इसलिए प्यार
मुर्दे मर्द की तरह कभी धोखा नहीं देते
औरत को ।