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हम तन्हा और यह सफ़र तन्हा/ विनय प्रजापति 'नज़र'

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लेखन वर्ष: २००४/२०११

हम तन्हा और यह सफ़र तन्हा
तुझे ढूँढ़े जो वह 'नज़र' तन्हा

यूँ तो तेरी तस्वीर है दिल में
फिर भी यह दीवारो-दर<ref>दीवारें और दरवाज़े</ref> तन्हा

घर में हम हैं और आइना भी
बिन तेरे हम दोनों, ये घर तन्हा

तुम्हें देखा आज फिर रू-ब-रू<ref>आमने-सामने</ref>
तुम्हें न दिखा, हूँ इस क़दर तन्हा

बिन तुम्हारे कुछ यूँ तन्हा हूँ
जैसे बिन फूल के शज़र<ref>पेड़</ref> तन्हा

बिन तुम्हारे कहीं दिल लगता नहीं
और मैं अब जाऊँ किधर तन्हा

तुम नहीं तो यूँ लगता है मुझे
मैं हूँ आज शहर-ब-शहर<ref>एक शहर से दूसरे शहर तक</ref> तन्हा

जलेंगे सारी-सारी रात हम
रहेगी फिर से रहगुज़र<ref>रास्ते</ref> तन्हा

गर तेरी यादें हाथ न बढ़ातीं
तो मैं रहता जीवन भर तन्हा

दरिया का पानी बाँधा किसने
बिन पानी हुई यह नहर तन्हा

न चाँद हँसा, न वो खु़र्शीद<ref>सूरज</ref> ढला
तुम बिन हुई शामो-फ़ज़िर<ref>शाम और भोर</ref> तन्हा

शब्दार्थ
<references/>