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मानवता की कब्र / अनंत भटनागर
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आज
मानवता की कब्र पर
नैतिकता का
मुर्दा
जलेगा !
मित्र !
तुम भी आना,
चार कविता सुनाना
चालीस तालियाँ
ले जाना।