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माँ की कोख में / सुरेश सेन नि‍शांत

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माँ की कोख में
हिलता है बच्चा
एक खिलता हुआ फूल
याद आता है माँ को ।

माँ की कोख में
हिलता है बच्चा
आसमाँ में उड़ती चिड़िया पे
बहुत प्यार आता है माँ को

माँ की कोख में
हिलता है बच्चा
मछली-सी तैरती जाती है
ख़्यालों के समन्दर में माँ
अपने बच्चे के संग-संग

माँ की कोख में
हिलता है बच्चा
सैकड़ों फूलों की ख़ुशबू
हज़ारों पेड़ों का हरापन
अनन्त झरनों का पानी
अपने आँचल से
उड़ेल देती है माँ
ज़िन्दगी के सीने में ।

माँ की कोख में
हिलता है बच्चा
पृथ्वी के सीने में भी
उतर आता है दूध
फैल जाता है हरापन
खिलते हैं फूल
निखरती है ख़ुशी ।
</poem