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कान्ह हेरल छल मन बड़ साध / विद्यापति

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कान्ह हेरल छल मन बड़ साध।
कान्ह हेरइत भेलएत परमाद।।
तबधरि अबुधि सुगुधि हो नारि।
कि कहि कि सुनि किछु बुझय न पारि।।
साओन घन सभ झर दु नयान।
अविरल धक-धक करय परान।।
की लागि सजनी दरसन भेल।
रभसें अपन जिब पर हाथ देल।।
न जानिअ किए करु मोहन चारे।
हेरइत जिब हरि लय गेल मारे।।
एत सब आदर गेल दरसाय।
जत बिसरिअ तत बिसरि न जाय।।
विद्यापति कह सुनु बर नारि।
धैरज धरु चित मिलब मुरारि।।