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उस दिन जब मैंने तुमको देखा / अनिल जनविजय

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उस दिन जब मैंने तुमको देखा

तुम खिली-खिली थीं

मानो तुमको कारूँ का खजाना

मिल गया हो

मुझसे इतने समय बाद भी

ऎसे हिली-मिली थीं

कह सको मन की बात तुम जिसे

वह साथी मिल गया हो


तुमने मुझे बताया कि तुम

अब पत्रकार हो

हवा में उड़ रही हो

घोड़े पर सवार हो

जल्दी ही तुम किसी बड़े

लेखक से विवाह करोगी

पर मैं हूँ मित्र तुम्हारा अन्यतम

मुझसे पहले-सी ही मिलोगी


तुम डूबी थीं गहन प्रेम में

अपने उस भावी पति के

और मैं डूबा था तुम में

न कि तुम्हारे आश्चर्यलोक में

तुम बोल रही थीं लगातार

बस अपनी ही झोंक में

पर मुझे नहीं लेना-देना था कुछ

तुम्हारे उस यति से


(1998 में रचित)