भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

पिता मर रहे थे / हेमन्त जोशी

Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:07, 19 अप्रैल 2011 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

इस दुनिया में मर रहे थे पिता
पिता के भीतर मर रही थी यह दुनिया।

मेरी दुनिया में मर रहे थे पिता
एक पूरी दुनिया मर रही थी मेरे पिता के साथ।

मृत्यु के बाद
मेरी स्मृति में जीवित रहेंगे मेरे पिता
पिता की स्मृति में नहीं रह पाऊंगा मैं?