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युवा होती बेटी, बूढ़ा होता पिता / कुमार सुरेश

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युवा होती बेटी में उद्भूत हो रही है स्त्री
बुढ़ाते पिता में पुरुष अब थकने लगा है
दोनों के रिश्ते नहीं हैं अब पहले से सहज

बेटी अब पहले की तरह लगाती नहीं अबूझ प्रश्नों की झड़ी
उँगली पकड़कर चलने की जिद नहीं करती
पिता को बेटी कुछ अजनबी लगने लगी है
बहुत कुछ छुपाना सीख गई है वह पिता से अब

दोनों नहीं करते
अब रिमोट के साथ पहले की सी मटरगश्ती
टेलीविजन पर अन्तरंग दृश्यों से
असहज हो उठता है पिता
उपक्रम करता है
किसी बहाने से चैनल बदलने का

युवा होती बेटी के लिए
दुनिया की रंगीन किताब के पृष्ठ धीरे-धीरे खुल रहे हैं
उसके पास केवल अभी चटक रंग है
पिता रंगीन किताब के भीतर की
काली लिखावट भी पहचानता है

जानता है वह
एक दिन अचानक कोई अजनबी
हो सकता है बेटी के लिए
पिता से भी बढ़कर महत्वपूर्ण
वह खुद के विस्थापन की संभावना के यथार्थ
से समझौते की प्रक्रिया में है

युवा होती बेटी अक्सर नींद में मुस्कुराती है
बूढ़े होते पिता को दुस्वप्न ज्यादा आते हैं