माँ के उरोज़ों के बीच
बहती-लहराती नदी में
डूबता-उतराता रहता था
बचपन में
आज मैं साठ की दहलीज पर हूँ
कई तीखी-गहरी, मदमाती-उफनती नदियाँ
देख चुका हूँ
कई नद, नाले, पहाड़
लाँघ चुका हूँ
आज न माँ है न नदी
चित्र है नदी का और
माँ याद आती है !