भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
माँ कहती है / राजेश जोशी
Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:39, 20 अप्रैल 2011 का अवतरण
हम हर रात
पैर धोकर सोते है
करवट होकर।
छाती पर हाथ बाँधकर
चित्त
हम कभी नहीं सोते।
सोने से पहले
माँ
टुइयाँ के तकिये के नीचे
सरौता रख देती है
बिना नागा।
माँ कहती है
डरावने सपने इससे
डर जाते है।
दिन-भर
फिरकनी-सी खटती
माँ
हमारे सपनों के लिए
कितनी चिन्तित है!