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बारिश : चार प्रेम कविताएँ-4 / स्वप्निल श्रीवास्तव

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कितना अच्छा लगता है
जब बारिश होती है
जंगल में
भीगती हुई वनस्पतियों से
उठती है ख़ुशबू
और जंगल के ऊपर
फैल जाती है

एक हिरन-शावक
छतनार पेड़ के नीचे
ठिठका हुआ खड़ा रहता है
क्या तुम उसे जानती हो प्रिय

वह मैं हूँ
दुनिया के कोलाहल से भागा हुआ
एक मनुष्य
पृथ्वी की हरियाली में
सुनने आया हूँ एक
आदिम संगीत

क्या तुम गाओगी प्रिय
इस घनी बारिश में