भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

संदेश / ओएनवी कुरुप

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:22, 22 अप्रैल 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ओएनवी कुरुप |संग्रह= }} {{KKAnthologyLove}} {{KKCatKavita‎}} <Poem> तुम बहु…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

तुम बहुत दूर हों और मैं यहाँ
हमारे बीच की इस लंबी दूरी को
गुज़ार रहा हूँ
रात और दिन को विदा करते हुए
पीड़ा से दिल दुखता है ।
अपने इस दुख को भूलाने,
चुपचाप तुम्हारे पास पहुँचने
और फिर फुसफुसाते हुए
तुमसे साँत्वना के
कुछ शब्द कहने के लिए
मैने आकाश में एक बादल को खोजना चाहा
लेकिन आकाश में धधकता हुआ
सूरज ही दिखाई दिया

मैंने मोर को ढूँढ़ा
तो दिखाई दिए उसके पंख
किसी ने उसकी हत्या कर दी थी
फिर मैंने एक तोते के बारे में सोचा
तोता गा सकता है
हमारी पीड़ा का गीत
मैंने तोते की खोज की
धान के खेत में
और रोने लगा

हरे पेडों के झुंड ने कहा--
वह नहीं आएगी
लेकिन तुम अगर उससे मिलो
तो बताना उसे
गुलदाउदी भी अपने अंतिम समय में
उसका इंतज़ार कर रही है
फिर बिलखते हुए मैं आगे बढ़ा...

तुम बहुत दूर हो और मैं यहाँ
रात और दिन को विदा करते हुए
पीड़ा से गुज़रते हुए

कोई नहीं है
तुम तक मेरा संदेश पहुँचानेवाला
कोई नहीं है ।

मूल मलयालम से अनुवाद : संतोष अलेक्स