भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अरे चन्दा ! तेरी निरमल कहिए चाँदनी/ ब्रजभाषा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

   ♦   रचनाकार: अज्ञात

अरे चन्दा !
तेरी निरमल कहिए चाँदनी,
राजा की बेटी पानी नीकरी

अरे कुँअटा!
तेरे ऊँचे-नीचे घाट रे,
जा ऊपर धोवै छोरा धोवती

अरे छोरा!
तू मारू बैंगन तोरि ला
ला जौं लौ मैं धोऊँ तेरी धोवती

अरे छोरी!
तेरे गोबर लिसरे हाथ रे,
दाग लगैगो मेरी धोवती

अरे छोरा!
मेरे मेंहदी रचि रहे हाथ रे,
रंग चुयेगी तेरी धोवती

अरे छोरा!
तू मन को बड़ो मलूक रे,
इत्ते बड़े पै क्वाँरो चौं (क्यों) रह्यौ (रहो) ?

अरे छोरी!
मेरे मरि गए माई बाप रे,
भैया भरोसे क्वाँरे हम रहे

अरे छोरी!
तू मन की बड़ी मलूक री,
इतनी बड़ी तौ क्वाँरी चौं रही?

अरे छोरा!
वर देखे देश-विदेश में,
मेरी जोड़ी को वर ना मिल्यौ

अरे छोरी!
चल चल तू सोरों घाट री,
ह्वाँ चलिके डारें दोनों भाँवरी

अरे छोरा!
वहाँ बहुत जुरैंगे लोग रे,
मोहि तो आवै देखौ लाज री।