भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

राजनीति / केदारनाथ अग्रवाल

Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:51, 24 अप्रैल 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=केदारनाथ अग्रवाल |संग्रह=कहें केदार खरी खरी / के…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

राजनीति नंगी औरत है
कई साल से जो यूरुप में
आलिंगन के अंधे भूखे
कई शक्तिशाली गुंडों को
देश-देश के जो स्वामी हैं
जो महान सेनाएँ रखते
जो अजेय अपने को कहते
ऐसा पागल लड़वाती है
आबादी में बम गिरते हैं;
दल की दल निर्दोषी जनता
गिनती में लाखों मरती है;
नष्ट सभ्यता हो जाती है-
कभी किसी के, कभी किसी के,
गले झूलकर मुसकाती है।
हार-जीत के इस किलोल से
संधि नहीं होने देती है॥

रचनाकाल: ०७-०२-१९४६