भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
दर्द / शैलेश मटियानी
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:34, 24 अप्रैल 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शैलेश मटियानी |संग्रह= }} {{KKCatKataa}} {{KKCatKavita}} <poem> होंठ हँ…)
होंठ हँसते हैं,
मगर मन तो दहा जाता है
सत्य को इस तरह
सपनों से कहा जाता है ।
खुद ही सहने की जब
सामर्थ्य नहीं रह जाती
दर्द उस रोज़ ही
अपनों से कहा जाता है !