भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

गीत गाने दो मुझे / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"

Kavita Kosh से
Tusharmj (चर्चा) द्वारा परिवर्तित 01:30, 26 जून 2007 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला" }} गीत गाने दो मुझे तो, वेद...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

गीत गाने दो मुझे तो,

वेदना को रोकने को।


चोट खाकर राह चलते

होश के भी होश छूटे,

हाथ जो पाथेय थे, ठग-

ठाकुरों ने रात लूटे,

कंठ रूकता जा रहा है,

आ रहा है काल देखे।


भर गया है ज़हर से

संसार जैसे हार खाकर,

देखते हैं लोग लोगों को,

सही परिचय न पाकर,

बुझ गई है लौ पृथा की,

जल उठो फिर सींचने को।