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आकां माथै हरयाळ्यां / राजेन्द्र स्वर्णकार
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आकां माथै हरयाळ्यां
सूखै तुलछी री डाळ्यां
गंगाजी नै गाळ अबै
पूजीजै गंदी नाळ्यां
थोर हंसै गमला में, अर
खेत सडै सिट्टा बाळ्यां
अबै अमूझो - अंधारो
करै झरोखा अर झाळ्यां
गिणै न बायां - बेट्यां नै
अधमां रै टपकै लाळ्यां
माथो जठै पीटणो व्है
लोग बठै पीटै ताळ्यां
आं रो कीं करणो पडसी
राजिंद, नीं चालै टाळ्यां