भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

विकास / केदारनाथ अग्रवाल

Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:49, 1 मई 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=केदारनाथ अग्रवाल |संग्रह=कहें केदार खरी खरी / के…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

विकास इस दिशा में हुआ है;
अब बहुत आदमी
बे-सिर पैर का हुआ है

पीठ के नीचे धूल पड़ी है
पेट पर आसमान खड़ा है
हाथ के हल गिर पड़े हैं

रचनाकाल: ३१-०१-१९६९