भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सिपाही हूँ / केदारनाथ अग्रवाल
Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:55, 1 मई 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=केदारनाथ अग्रवाल |संग्रह=कहें केदार खरी खरी / के…)
सिर नहीं-
गुलाब तोड़े हैं मैंने
क्योंकि मैं
सिपाही हूँ-
बाग में बगावत का खतरा है
आग से बचाना है
भीड़ को मिटाना है
रचनाकाल: ०४-०४-१९७०