भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
वे / कहें केदार खरी खरी / केदारनाथ अग्रवाल
Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:05, 1 मई 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=केदारनाथ अग्रवाल |संग्रह=कहें केदार खरी खरी / के…)
हम गा रहे हैं
उनकी मौत का गाना
जिन्हें आता है अब
इंसान को हैवान बनाना
खुद अपने लिए आरामगाह
और दूसरों के लिए
जगह-ब-जगह
कत्लगाह बनाना
रचनाकाल: १२-१२-१९७०