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बीच में / केदारनाथ अग्रवाल
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चलते-चलते भी
न चलकर थक गया दिमाग,
पाँव की यात्रा पर गए पाँव न थके
विवेक हो गया बैठ गया दूध
गंतव्य के पहले ही
बीच में एक जगह
झाड़-झंखाड़ में फँस गई राजनीति
फँसी चिड़िया उड़ नहीं पाती।
रचनाकाल: २८-०३-१९७७